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कविता

सपना

विमलेश त्रिपाठी


गाँव से चिट्ठी आयी है
और सपने में गिरवी पड़े खेतों की
फिरौती लौटा रहा हूँ

पथराये कन्धे पर हल लादे पिता
खेतों की तरफ जा रहे हैं
और मेरे सपने में बैलों के गले की घंटियाँ
घुँघरू की तान की तरह लयबद्ध बज रही हैं

समूची धरती सर से पाँव तक
हरियाली पहने मेरे तकिये के पास खड़ी है

गाँव से चिट्ठी आयी है
और मैं हरनाथपुर जाने वाली
पहली गाड़ी के इन्तजार में
स्टेशन पर अकेला खड़ा हूँ।

 


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